प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : अमर उजाला
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कागजों में मर चुके रामचंद्र छह साल से खुद को जिंदा साबित करने के लिए तहसील के चक्कर लगा रहे हैं। अधिकारियों को प्रार्थनापत्र दे रहे हैं, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। इससे पहले जियाऊ और हरिकृष्ण का मामला सामने आ चुका है। अमर उजाला में खबर छपने के बाद इन्हें कागजों में जिंदा कर दिया गया है।
जानकारी के मुताबिक, पॉली ब्लॉक के माड़र गांव निवासी रामचंद्र पुत्र दुर्जन का आराजी नंबर 198 रकबा 0.085 हेक्टेयर खेत है। इस खेत को 30 सितंबर 2016 में तत्कालीन राजस्व कर्मियों ने रामचंद्र को मृत दिखाकर गांव के अन्य लोगों के पक्ष में वरासत कर दिया। इसकी जानकारी होने पर रामचंद्र ने कुछ वर्ष पूर्व तत्कालीन तहसीलदार को पत्र देकर न्याय की गुहार लगाई।
तत्कालीन तहसीलदार ने उन्हें आश्वासन दिया और उस समय के लेखपाल ने जांच भी की, लेकिन खतौनी में रामचंद्र का नाम नहीं चढ़ा। हद तो यह हो गई है कि जिन लोगों के नाम तत्कालीन राजस्व कर्मियों ने वरासत दर्ज की थी उनकी मृत हो चुकी है। उक्त संपत्ति उनके परिजनों के नाम से वरासत हो चुकी है। इस संबंध में रामचंद्र ने कई बार संपूर्ण समाधान दिवस में प्रार्थनापत्र देकर न्याय की गुहार लगाई, लेकिन न्याय नहीं मिल पाया।
पॉली ब्लॉक के रामचंद्र तीसरे आदमी हैं, जिन्हें सरकारी कागजों में मृत घोषित करके उनकी संपत्ति को किसी और के नाम कर दिया गया है। इससे पहले जियाऊ पाल और हरिकृष्ण रामदास को भी सरकारी कागजों में मृत घोषित कर दिया गया था।
ये दोनों भी खुद को जिंदा साबित करने के लिए कई सालों से तहसील और अधिकारियों के चक्कर लगा रहे थे। दोनों की आपबीती अमर उजाला में छपी तो इन्हें न्याय मिला है। हालांकि इन्हें कागजों में मारने का अपराध करने वालों पर अभी कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
सहजनवां तहसीलदार शशिभूषण पाठक ने कहा कि मामला संज्ञान में आया है। जांच कर पीड़ित को न्याय दिलाया जाएगा।
विस्तार
कागजों में मर चुके रामचंद्र छह साल से खुद को जिंदा साबित करने के लिए तहसील के चक्कर लगा रहे हैं। अधिकारियों को प्रार्थनापत्र दे रहे हैं, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। इससे पहले जियाऊ और हरिकृष्ण का मामला सामने आ चुका है। अमर उजाला में खबर छपने के बाद इन्हें कागजों में जिंदा कर दिया गया है।
जानकारी के मुताबिक, पॉली ब्लॉक के माड़र गांव निवासी रामचंद्र पुत्र दुर्जन का आराजी नंबर 198 रकबा 0.085 हेक्टेयर खेत है। इस खेत को 30 सितंबर 2016 में तत्कालीन राजस्व कर्मियों ने रामचंद्र को मृत दिखाकर गांव के अन्य लोगों के पक्ष में वरासत कर दिया। इसकी जानकारी होने पर रामचंद्र ने कुछ वर्ष पूर्व तत्कालीन तहसीलदार को पत्र देकर न्याय की गुहार लगाई।
तत्कालीन तहसीलदार ने उन्हें आश्वासन दिया और उस समय के लेखपाल ने जांच भी की, लेकिन खतौनी में रामचंद्र का नाम नहीं चढ़ा। हद तो यह हो गई है कि जिन लोगों के नाम तत्कालीन राजस्व कर्मियों ने वरासत दर्ज की थी उनकी मृत हो चुकी है। उक्त संपत्ति उनके परिजनों के नाम से वरासत हो चुकी है। इस संबंध में रामचंद्र ने कई बार संपूर्ण समाधान दिवस में प्रार्थनापत्र देकर न्याय की गुहार लगाई, लेकिन न्याय नहीं मिल पाया।