हरियाणा में जीएसटी घोटाला।
– फोटो : प्रतीकात्मक तस्वीर
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डीजीपी मनोज यादव ने बताया कि फिर टेलीएप और शकुन सॉफ्टवेयर जैसे एप्स का उपयोग करके इन फर्मों के बिल तैयार करते थे। बाद में जीएसटी पोर्टल पर ई-वे बिल जनरेट करने के लिए इन बिलों को अपलोड करते थे। इन जालसाजों द्वारा तैयार की गई ई-वे बिल की अधिकतम संख्या क्राइम ब्रांच द्वारा सत्यापन पर फर्जी पाई गई।
इन ई-वे बिल में एंबुलेंस, सरकारी वाहन, मोटरसाइकिल, निजी स्वयं के वाहनों से संबंधित वाहन संख्याओं का उल्लेख किया गया है। जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने के विपरीत हैं। पुलिस जांच में, बैंक खाता संख्या, जो फर्जी फर्म के जीएसटी पंजीकरण फॉर्म में दिखाई गई थी, वह भी संदिग्ध पाई गई हैं। धोखाधड़ी करने वालों ने संबंधित प्राधिकरणों को धोखा देने के लिए अन्य बैंक के गेटवे का भी उपयोग किया।
यह भी खुलासा हुआ कि जीएसटी चोरी करने वालों ने ऐसी फर्जी फर्मों को रेंट एग्रीमेंट, बिजली बिल, पैन कार्ड आदि कई अन्य जाली दस्तावेजों के द्वारा स्थापित किया। जांच में यह पाया गया कि इन फर्जी फर्मों का कोई व्यावसायिक परिसर या कोई स्टॉक रजिस्टर नहीं था और बिना खरीद रजिस्टर के सब काम कर रहे थे। इसके अलावा, फर्म के नाम पर कोई बुनियादी ढांचा भी नहीं था। जालसाजी के अन्य तरीकों में निदेशक/प्रोपराइटर, उनके पते, मोबाइल नंबर, पैन कार्ड, ईमेल को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में बदल देते थे।
21 मामलों में हो चुकी गिरफ्तारी
अपराध शाखा मधुबन (करनाल इकाई) पहले ही गोविंद और उसके सहयोगियों को 44.79 करोड़े के फर्जी चालान घोटाले के 21 मामलों में गिरफ्तार कर चुकी है। आरोपी ने अपने सहयोगियों सहित बिला कॉटन व अन्य माल सप्लाई के फर्जी चालान बिल और ई-वे बिल के आधार पर फर्जी क्लेम लिया।
गोविंद करता था अकाउंटेंट का काम
गोविंद विभिन्न फर्मों के मासिक रिटर्न भरने के लिए एक अकाउंटेंट के रूप में काम करता था, लेकिन 2016 में उसने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ई-वे बिल जनरेट करने की प्रक्रिया सीखी और लोगों के नाम पर फर्जी तरीके से उनके आईडी प्रमाण और दस्तावेज जुटाकर फर्जी फर्म बनाना शुरू कर दिया।
सिंगला ने किया 157 करोड़ की जीएसटी का घोटाला
हिसार क्राइम यूनिट ने सूती धागे की सामग्री की वास्तविक आपूर्ति किए बिना 157 करोड़ की जीएसटी राशि का घोटाला करने वाले सिरसा निवासी और वर्तमान में दिल्ली में रहने वाले अनुपम सिंगला को गिरफ्तार किया। जांच के दौरान लगभग 173 विभिन्न बैंक खातों से संबंधित ब्लैंक हस्ताक्षरित चेकबुक, विभिन्न ट्रांसपोर्टर्स से संबंधित खाली बिल्टी बुक, विभिन्न व्यक्तियों के पहचान प्रमाणपत्र, मोबाइल सिम कार्ड और अन्य असंगत दस्तावेज पाए गए।
डीजीपी मनोज यादव ने बताया कि फिर टेलीएप और शकुन सॉफ्टवेयर जैसे एप्स का उपयोग करके इन फर्मों के बिल तैयार करते थे। बाद में जीएसटी पोर्टल पर ई-वे बिल जनरेट करने के लिए इन बिलों को अपलोड करते थे। इन जालसाजों द्वारा तैयार की गई ई-वे बिल की अधिकतम संख्या क्राइम ब्रांच द्वारा सत्यापन पर फर्जी पाई गई।
इन ई-वे बिल में एंबुलेंस, सरकारी वाहन, मोटरसाइकिल, निजी स्वयं के वाहनों से संबंधित वाहन संख्याओं का उल्लेख किया गया है। जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने के विपरीत हैं। पुलिस जांच में, बैंक खाता संख्या, जो फर्जी फर्म के जीएसटी पंजीकरण फॉर्म में दिखाई गई थी, वह भी संदिग्ध पाई गई हैं। धोखाधड़ी करने वालों ने संबंधित प्राधिकरणों को धोखा देने के लिए अन्य बैंक के गेटवे का भी उपयोग किया।
यह भी खुलासा हुआ कि जीएसटी चोरी करने वालों ने ऐसी फर्जी फर्मों को रेंट एग्रीमेंट, बिजली बिल, पैन कार्ड आदि कई अन्य जाली दस्तावेजों के द्वारा स्थापित किया। जांच में यह पाया गया कि इन फर्जी फर्मों का कोई व्यावसायिक परिसर या कोई स्टॉक रजिस्टर नहीं था और बिना खरीद रजिस्टर के सब काम कर रहे थे। इसके अलावा, फर्म के नाम पर कोई बुनियादी ढांचा भी नहीं था। जालसाजी के अन्य तरीकों में निदेशक/प्रोपराइटर, उनके पते, मोबाइल नंबर, पैन कार्ड, ईमेल को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में बदल देते थे।